Showing posts with label daughter. Show all posts
Showing posts with label daughter. Show all posts

Sunday, 20 May 2018

बेटी का संदेश - मायके के नाम - कविता

 बेटी का संदेश - मायके के नाम - कविता


पले बढे हम जिस धरती पर
याद बहुत आती है भइया
अगर अकेली मैं पड़ जाऊँ
बातों से साथ निभाना भइया
नहीं चाहिए खाना कपडा
भाभी को समझाना भइया
बच्चों को समझाना भइया
अपनी बात बताना भइया

पले बढे हम जिस धरती पर
याद बहुत आती है भइया
समय भले तुम न दे पाओ
हिस्से की रोटी खा जाओ
नही चाहिए छप्पन व्यंजन
भावों की भूखी हूँ भइया
बहन बानी बाँधी मैं राखी
दिल में जगह बनाये रखना

पले बढे हम जिस धरती पर
याद बहुत आती है भइया
कौल भले ही न कर पाओ
फ़ोन उठा तुम लेना भइया
ममता से है बना मायका
पिता छाँव का गहरा रिश्ता
भाभी तोह भावों की कुंजी
मेरी बात बताना भइया

पले बढे हम जिस धरती पर
याद बहुत आती है भइया
ब्रत एकादशी के दिन आऊँगी
खाली हाथ नहीं आऊँगी
कहाँ से लाऊँ हीरे-मोती
करूँ मांग में सबकी पूरी
अनजाने की गलती भाभी
मुझे बता तुम देना भइया

- मेनका

Wednesday, 18 October 2017

गोदांजाली (२४ जुलाई) - कविता

गोदांजाली (२४ जुलाई) - कविता



मेरी ममता के आँचल को सजाया तूने|
मेरी ज़िन्दगी की दशा को दिशा दिया तूने||
मेरे सुने गोद को हरा-भरा किया तूने|
पापा के आने की हर आहट को महसूस किया तूने||
अपने हर निवाले पर पापा को मिस किया तूने|
हमारे सूखे रेगिस्तान में वर्षा की फूहार है तू||
हमारे सूने घर में रौशनी बनकर आई तू|
हमारे रसोई की हर स्वाद और खुशबु है तू||
हमारी ज़िन्दगी के फूलों की पंखुड़ी है तू|
भाई के जीवन की सम्पूर्णता है तू||
हमारे हर त्यौहार की सजावट है तू|
हमारे अतीत की जान और प्राण है तू||
हमारे बीते हुए कल की धरोहर है तू|
अपने भाई के जीवन का राग है तू||
हमारे हर परेशानी का इलाज है तू|
भाई के जीवन की आशा है तू||
पापा के जीवन की परिभाषा है तू|
मेरे विचारों का कोरा कागज़ है तू||
मेरे हर गुत्थियों की सुलझन है तू|
हमारे का वो हर सुझाव है तू||
हमारे जीवन की रहस्यमयी किताब है तू|
हमारे गरिमा की नाक है तू||
हमारे परिवार की संस्कृति है तू|
पापा के जीवन का ख्वाब है तू||

- मेनका

Tuesday, 23 May 2017

दहेज़ का दानव - कविता

दहेज़ का दानव - कविता


दहेज़ के दानव से प्यारे, हर घर को अब लड़ना होगा|
बेटी के सपनों को प्यारे, उड़ने की आज़ादी दे दो||
बेटी के असली सूरत को, बहु रूप में लाना होगा|
तभी पढ़ेगी सबकी बेटी,  तभी बचेगी सबकी बेटी||
दहेज़ के दानव को प्यारे, कोशों दूर भगाना होगा|
बेटी और बेटा तो प्यारे एक  सिक्के के पहलू दो है||
बेटी की प्यारी सुरत को, दिल से अब अपनाना होगा|
बेटी और बेटा तो प्यारे, मत बाँटो तुम अपने दिल से||

दहेज़ के दानव से प्यारे, हर घर को अब लड़ना होगा|
वृद्धावस्था का डर भी प्यारे नहीं रहेगा सबके मन में||
सास-ससूर के जीवन में तो हर घर में ही जन्नत होगी||
दहेज़ को अब बहू रूप में हर जन को अपनाना होगा|
बेटी ही तो बहू रूप में, हम सबकी पालनकर्ता है||
दहेज़ के इस रौद्र-रूप को दुनिया से दूर भगाना होगा|
बेटी ही तो बहू रूप में, बेटा के दिल की धड़कन है||
दहेज़ के आगोश से प्यारे, बेटीयों को भी बचाना होगा|

दहेज़ के दानव से प्यारे, हर घर को अब लड़ना होगा|
बेटी ही तो बहू रूप में हर घर का पूरक बनती है||
दहेज़ के इस हवनकुंड से, बेटीयों को भी बचाना होगा|
बेटी ही तो लक्ष्मी रूप में, हर घर कि रौनक बनती है||
बेटी ही तो दुर्गा रूप में, हम सबकी रक्षा करती है|
मत मारो अब बेटी को प्यारे, जीने की आज़ादी दे दो||
नहीं बनेगा कोई आश्रय, हर घर ही आश्रय होगा|
बेटी ही तो वंश वृक्ष का बहू रूप में अंकुर बनती||
बेटी ही तो बहू रूप में वंशज का आश्रय बनती|
दहेज़ के दानव से प्यारे, हर घर को अब लड़ना होगा||

- मेनका

Thursday, 19 May 2016

नन्ही परी - कविता

नन्ही परी - कविता


फूलों की मैं कलियाँ बनकर - माँ के मन की गुड़िया बनकर। 
इस दुनिया को देखा मैंने - पापा को पहचाना मैंने॥ 

दूर - दूर तक तन्हाई थी - दादी दर्द लिए बैठी थी। 
आस - पास के सारे बच्चे - मुझे देख कर खुश होते हैं॥ 

पापा की मैं इच्छा बनकर - दादा की प्रतीक्षा।
मम्मी की मैं रानी बेटी - दादी की हूँ परायी॥ 

फूला गाल बैठी हैं - मम्मी को कोस रही। 
दुनिया में क्यों लाई इसको - तूने मुझको दूर किया ॥ 

बड़ी हुई जब माँ की लाड़ली - अरमानो की रानी बनकर।
पापा के सपनों की रानी - अपने मन की हैं मनमानी॥

बहुत बड़ी हैं भीड़ खड़ी यह - आरक्षण की टोली बनकर।
माँ की बेटी मौन खड़ी हैं - सोच रही है तनहा होकर॥

-  मेनका

मिलिट्री मैन - कविता

मिलिट्री मैन - कविता दशक चाकरी की वीरों सा| पल-भर में क्यों अनदेख किया|| पलक झपकते दौड़ गए थे| घुटनो के बल रेंग गए थे|| भारत की माटी को हमने|...