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Monday, 10 September 2018

१८ अगस्त - कविता

१८ अगस्त - कविता


जन्मतिथि शुभ अवसर आया,
माँ के हाथ का तोहफा लाया|
सावन की रिमझिम है सुन्दर,
शंकर की डमरू की धुन है|
मना रहा है देश हमारा,
जश्न भारत वर्ष का|

हौसला है लाल माँ का,
बुलंदियाँ है बाप का|
तहजीब है यह देश का.
शान है परिवार का|
गुरुर है मानव धर्म का,
आदर्श भारत वर्ष का|

आरज़ू है माँ से मेरी,
लाज रखना मेरे लाल की|
छूने न पाये गम लबों का.
आशीष दो मेरे ला को|
अमर घूमर खुशियों के बादल,
बरसती रहे यूँ उम्र भर|

- मेनका


Sunday, 20 May 2018

वंश का वैभव (१८ अगस्त) - कविता

वंश का वैभव (१८ अगस्त) - कविता


भाद्र माह मन भावन आया|
त्योहारों की खुशियाँ लाया||
बना वंश वैभव संरक्षक|
जन्मदिन की खुशियाँ लाया||
मम्मी की आँखों का तारा|
पापा का है राज दुलारा||
बना बहन का रक्षक आया|
बाबा का वंशज बन आया||
भाद्र माह मन भावन आया|
भाई बहन का उत्सव आया||

आज़ादी अधिकार महोत्सव|
उत्सव की धुन सुनकर आया||
भारत के भावों का प्यारा|
पापा के प्राणों से प्यारा||
वृन्दावन की छटा निराली|
जन्म लिये है वृज बिहारी||
मथुरा में मन मोहन की धुन|
बना भक्त बन सुनने आया||
भाद्र माह अति सुन्दर आया|
कृष्ण जन्म  खुशियां लाया||

भाद्र माह मन भावन आया|
गणेश चतुर्थी घर-घर आये||
हरियाली है तीज सुहाये|
पारवती संग सखियाँ भावे||
शीव-शम्मू का ब्रत अति सुन्दर|
हरियाली छवि छटा सुहाये||
भाद्र मॉस पूर्णमासी के दिन|
आनन्द कन्द ब्रत मन मोहे सबको||
भाद्र माह मन भावन आया|
त्योहारों की खुशियाँ लाया||

- मेनका

Friday, 20 October 2017

वंशोदय (१८ अगस्त) - कविता

वंशोदय (१८ अगस्त) - कविता


आज ही के दिन आकर, लाज रख दी वंश की|
पलक पॉवड़े बिछे हुए थे, आशा की परिभाषा लेकर||
काले अंधेरे बादलों में, आ गया तू चाँद बनकर|
आज ही के दिन आकर, लाज दी राखी की||
आधी-अधूरी गोद को, कर दिया सम्पूर्ण तूने|
 इशारे  समझता, दूर रहकर पास है तू||
 दिल की धड़कन में है बसता सांस की आवाज़ है तू|

आज ही के दिन आकर, लाज रख दी वंश की|
वंश का वैभव संभाले सूर्यवंश का लाल है तू||
डैड  मुकुट बनकर,  सरताज बन तू|
कलाम की आवाज़ सून, आवाम को पहचान तू||
 कुछ कर गुजरने की तमन्ना, सर सांस में आवाज़ दे|
माँ की गरिमा की लाज रखना, बुलंदियों को कर नमन||
ग़द्दारियों से दूर रहकर, अपने मिशन को कर पूरा|

आज ही के दिन आकर, लाज रख दी वंश की|
धर्म का दामन पकड़ तू, जात-पात में न उलझ||
शान बन तू देश का, गौरव परिवार का|
जन्मोत्सव और रक्षा बंधन का, ये अद्भुत मिलन है||
सपनों  ताज  खुशियों की परिभाषा की ये अनमोल घड़ी है|
रविवार दिनकर के दिन तुम, आशाओं की किरणें लेकर||
रविवार छुट्टी  तुम, आय हम सबके जीवन में|
पापा  छुट्टी को तुमने, सार्थक करके खुशियाँ लाय||
आज ही के दिन आकर, लाज रख दी वंश की| 

- मेनका

Saturday, 21 May 2016

युवराज - कविता

युवराज - कविता


माँ के मन का मोर बनकर - बाप का सिर मौड़ बनकर। 
वंश का वंशज खड़ा है - दश का कर्णधार बनकर॥ 

माँ के मन का देव बनकर - ज़िन्दगी को जी रहा वह।
सोच रहा वह प्रत्येक क्षण है - आगे बढ़ने की चाह लिए॥

परिवार का उत्थान हो - या हो देश का उत्थान।
कुछ कर गुजरने की तमन्ना - हर समय है साथ लिए॥

दिन  हो या रात - स्वास्थ्य हो या हो बिमार।
रिश्तों के अच्छे मोती को - ढूंढ़ रहा वह तन्हा होकर॥

आरक्षण की काली अंधियारी -  देख रहा वह दूर खड़ा।
 कब आयेगी मेरी बारी? हर पल है वह चाह लिए॥

माँ के मन का मोर बनकर - बाप का सिर मौड़ बनकर।
वंश का वंशज खड़ा है - देश का कर्णधार बनकर॥

-  मेनका

मिलिट्री मैन - कविता

मिलिट्री मैन - कविता दशक चाकरी की वीरों सा| पल-भर में क्यों अनदेख किया|| पलक झपकते दौड़ गए थे| घुटनो के बल रेंग गए थे|| भारत की माटी को हमने|...