लम्हों के कुछ मीठे पल - कविता
शिशिर सुबह की मधुबेला हो,
प्रभु मिलान अमृत वेला|
खिलते कलियों का मंज़र हो,
उठते लहरों का समंदर|
ओस के कुछ बूंद है,
वो रात के अवशेष हैं|
महकते फूलों की हो खुशबु,
मंडराते भौरों का नज़ारा|
नाचते जब मोर हैं,
झंकृत हुआ मन मोर हैं|
बागो का हो वादियाँ और,
चुस्कियाँ हो चाय की|
सुबह सूर्य की रौशनी हो,
नत मस्तक सब ख्वाहिशें है|
बीते लम्हों के मीठे पल,
चहकते चिड़ियों का कलरव|
शिशिर सुबह की मधुबेला हो,
प्रभु मिलान अमृत वेला||
- मेनका
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