Tuesday 11 September 2018

मानव धर्म - कविता

मानव धर्म - कविता


मानवता है धर्म हमारा|
रंग भये बहुतेरे||
इंद्रधनुषी वस्त्र हमारे|
जीव भये बहुतेरे||
आँखों में सुरमा है सुन्दर|
लाल रंग की बिंदी||
केशरिया है तीलक विराजे|
सफ़ेद रंग की धोती||

मानवता है धर्म हमारा|
रंग भये बहुतेरे||
मानवता ममता का आँगन|
निर्मल मन अति भावन||
सजा रहे घर आँगन सबका|
शुद्ध समर्पण सा मन||
बुरी आत्मा बुरा आचरण|
छुपा हुआ अधर्मी||

ममता राग को वह नोचे|
बना फिरे सत्संगी||
अंग विहिन वह सेंसहीन है|
मंजिल है उत्पाती||
तामस तन करुनाविहीन है|
चोला है चित पंचल||
मानवता है धर्म हमारा|
रंग भये बहुतेरे||

- मेनका

Monday 10 September 2018

१८ अगस्त - कविता

१८ अगस्त - कविता


जन्मतिथि शुभ अवसर आया,
माँ के हाथ का तोहफा लाया|
सावन की रिमझिम है सुन्दर,
शंकर की डमरू की धुन है|
मना रहा है देश हमारा,
जश्न भारत वर्ष का|

हौसला है लाल माँ का,
बुलंदियाँ है बाप का|
तहजीब है यह देश का.
शान है परिवार का|
गुरुर है मानव धर्म का,
आदर्श भारत वर्ष का|

आरज़ू है माँ से मेरी,
लाज रखना मेरे लाल की|
छूने न पाये गम लबों का.
आशीष दो मेरे ला को|
अमर घूमर खुशियों के बादल,
बरसती रहे यूँ उम्र भर|

- मेनका


मिलिट्री मैन - कविता

मिलिट्री मैन - कविता दशक चाकरी की वीरों सा| पल-भर में क्यों अनदेख किया|| पलक झपकते दौड़ गए थे| घुटनो के बल रेंग गए थे|| भारत की माटी को हमने|...