Thursday 12 September 2019

हिंदी दिवस - दोहे

हिंदी दिवस - दोहे




हिंदी हमारे राष्ट्र की |
नीले गगन को चूमती ||

माँ भारती सम्मान हो |
सुन्दर सुरो का राज हो ||

हिंदी ह्रदय मन बोलती |
रुन-झुन नूपुर पग डोलती ||

स्पन्दित सवेरा सांझ है |
सुन्दर सुनहरा साज है ||

हिंदी हमारे हिन्द की |
धरोहर हमारे नींव की ||

हिंदी वतन अनुराग है |
हस्ते गग्गन का ताज है ||

हिंदी हमारी शान है |
विहंगम भूमि वरदान है ||

भाव भरा भंडार है |
विभूतियाों का साज है ||

हिंदी हमारी जान है |
जन-मन में इसका मान है ||

समारोह हिंदी दिन आया |
भादव माह निमंत्रित आया ||

- मेनका

Wednesday 14 August 2019

राखी - कविता

राखी - कविता




रक्षा भले तुम कर न पाओ |
दर्द मुझे तुम मत देना ||
असमंजस में खड़ी बहन है |
रक्षासूत्र किसे मैं बाँधु ?
देने को कुछ पास नहीं है |
लेने को कुछ आस नहीं है ||
एहसासो के हीरे-मोती - मेरे मन भंडार भरे |
रिश्तों के गंगा-सागर में खुशियों के संसार भरे ||
सुना है मैंने श्याम हमारे |
हर सुख-दुःख में साथ खड़े ||
श्यामा के वंशीघर कर में |
राखी रब-कर में बाँधू ||
चरण-कमल में आस हमारी |
जीवन में नया अंधियारी ||
हमें उबारो है मुरलीधर |
पल-पल तेरा ध्यान धरु ||
मीरा के एहसासों को तुमने |
हर-पल है महसूस किया ||
मुझे भी तारो हे मन-मोहन |
तुझ बिन मेरा आस नहीं ||

- मेनका

Tuesday 13 August 2019

वाइपर - कविता

वाइपर - कविता




ले आया - मेरा लाल वाइपर |
अनकहे - शब्दों में जाकर ||
टाल रही - अपनी चीज़ों को |
कम-से-कम - चीज़े हो अपनी ||
बिना तनाव - तन-मन हो अपनी |
एहसासों का - नदी लबालब ||
राधा की - रुन-झुन पायल हो |
श्याम क्षबि - हर वक़्त निहारुँ ||
सुख-दुःख - सब श्यामा बतलाऊँ |
भाव भरे - सुध-बुध खो जाऊँ ||
मन-मंदिर - में जाकर अपनी |
चरणों में - जाकर सो जाऊँ ||

ले आया - मेरा लाल वाइपर |
अनकहे - शब्दों में जाकर ||
ले आया मौसम - वर्षा का |
शीव का - सुन्दर सावन आया ||
शयाम समा - वृन्दावन बांधे |
बेनु-वन, तन-मन - अति भाये ||
बादल के गोदों में - रिमझिम |
उछल कुदती - है धरती पर ||
पवन मस्त - अपनी धुन में है |
बिजली बादल - मस्त गरजती ||
हरी-भरी - धरती है प्यारी |
रक्षा - सम्राट की जिम्मेदारी ||

- मेनका

Sunday 12 May 2019

चारो धाम - गीत

चारो धाम - गीत




पिया हे चलु चारो धाम
बाबा केदारनाथ जगलन हे|
धनी हे कैसे चलब चारो धाम?
बाबा के विकट नगरी|
नीक-नीक भांग भोला
तोरी हम राखल सेहो
शीव के चढ़ैबइ हे
बाबा के दर्शन करबइ हे|

पिया हे चलु चारो धाम
बद्रीनाथ जगलन हे|
धनी हे कैसे चलब चारो धाम?
प्रभु के विकट डगरी|
पियरी पिताम्बर नाथ
जतन से राखल
बद्रीनाथ जी के चढ़ैबइ हे
प्रभु जी के दर्शन करबइ हे|

पिया हे चलु चारो धाम
हम गंगोत्री जयबई हे|
धनी हे कैसे चलब चारो धाम?
गंगा के विकट डगरी|
गंगा के श्रृंगार हम,
खोंइछा भरी राखल|
हम त सेहो चढ़यबई हे
हम गंगोत्री नहयबई हे|

पिया हे चलु चारो धाम
हम यमुनोत्री जयबई हे|
धनी हे कैसे चलब चारो धाम?
यमुनोत्री विकट डगरी
यमुनाजी के वस्त्र हम,
साजी के राखल
हम त चुंदरी चढ़यबई हे
हम यमुनोत्री नहयबई हे|


- मेनका

Wednesday 24 April 2019

आह की आहट - कविता

आह की आहट - कविता


ध्यान रहे यह, पल-पल क्षण-क्षण|
आहें न ले, बेगुनाह की||
आह की आहार तुम्हारी|
नाकाम कोशिश, साज़िश की||
फूटती जब, दर्द दिल का|
रूबरू, बेपर्द किस्सा||
जागीर की, जंजीर से तू|
कैद, कर सकते नहीं||
आह का आलम कभी|
सोने न देगी, चैन से||
शान की, शोहरत तुम्हारी|
लगा न दे, बेजान टीका||
साँस की, सरेआम शबनम|
नीलम न हो, बाजार में||
आह की, सूरत तुम्ह|
जीने न देगी, चैन से||
आहें कभी, मरती नहीं|
ज़िंदा कभी, जलती नहीं||
दवा न ले, बीमार की|
दवा न खा बीमार की||
देश हमारा डिजिटल है |
पर कार्ड हमारा कोने में||
हम जब चाहे जैसे चाहे|
हर कोने में जाकर वास करे||

- मेनका

Monday 8 April 2019

स्वच्छ भारत - कविता

स्वच्छ भारत - कविता




स्वच्छता के बीज बापू|
लगा गए अरमान से||
आज हमारे देश भक्त|
लहलहा दिए बड़े लाड से||
स्वच्छता के वृक्ष विराने|
में खड़ा खिल-खिला रहा||
स्वच्छ भारत शान है|
शालीनता मिसाल है||
सुन्दर मनोहर स्वच्छता के|
गीत भारत गा रहा||

- मेनका

Wednesday 20 March 2019

वीरता का अभिनन्दन - कविता

वीरता का अभिनन्दन - कविता


 आ रहा है लाल माँ का,
लाज है वो देश का|
अभी अभिनन्दन तुम्हारा,
देशवापसी कर रहा|
माँ भारती का ताज है तू,
दे रहा संदेश है|
गुरुर है तू देश का और,
शान है तू टीम का|
अदम्य साहस वीर है,
कायर नहीं वो वीर है|
माँ भारती के लाल है,
भक्त अपने देश का|
मर्यादा मातृभूमि की,
खोते नहीं वो वीर है|
आ रहा है लाल माँ का,
लाज है वो देश का|

- मेनका

Saturday 16 February 2019

वीणा-वादिनी

वीणा-वादिनी


सुअवसर आज है सुन्दर,
जो सरस्वती माँ पधारी  है|
मनाती थी बहुत दिन से,
वही फिर भाग्य से पाई|
कनक के द्दाल में भर-भर,
मणी-मुक्ता नहीं लाई|
फूलो का हार चुन-चुनकर,
माँ अर्चना को आई हूँ|
तेरा सान्निध्य पाकर माँ,
नयन में नीर आते हैं|
कनक का दान मत दे माँ,
मुझे वाणी की अभिलाषा|
तुम्हारा प्यार पाकर माँ.
मैं अनुराग लाई हूँ|
तुम स्वीकार कर लेना,
यह पुष्पाञ्जलि मेरी|
नवाती शीश चरणों में,
धरोहर आज पाई हूँ|

- मेनका

Wednesday 23 January 2019

लम्हों के कुछ मीठे पल - कविता

लम्हों के कुछ मीठे पल - कविता


शिशिर सुबह की मधुबेला हो,
प्रभु मिलान अमृत वेला|
खिलते कलियों का मंज़र हो,
उठते लहरों का समंदर|
ओस के कुछ बूंद है,
वो रात के अवशेष हैं|
महकते फूलों की हो खुशबु,
मंडराते भौरों का नज़ारा|
नाचते जब मोर हैं,
झंकृत हुआ मन मोर हैं|
बागो का हो वादियाँ और,
चुस्कियाँ हो चाय की|
सुबह सूर्य की रौशनी हो,
नत मस्तक सब ख्वाहिशें है|
बीते लम्हों के मीठे पल,
चहकते चिड़ियों का कलरव|
  शिशिर सुबह की मधुबेला हो,
प्रभु मिलान अमृत वेला||

- मेनका

मिलिट्री मैन - कविता

मिलिट्री मैन - कविता दशक चाकरी की वीरों सा| पल-भर में क्यों अनदेख किया|| पलक झपकते दौड़ गए थे| घुटनो के बल रेंग गए थे|| भारत की माटी को हमने|...