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Wednesday, 14 August 2019

राखी - कविता

राखी - कविता




रक्षा भले तुम कर न पाओ |
दर्द मुझे तुम मत देना ||
असमंजस में खड़ी बहन है |
रक्षासूत्र किसे मैं बाँधु ?
देने को कुछ पास नहीं है |
लेने को कुछ आस नहीं है ||
एहसासो के हीरे-मोती - मेरे मन भंडार भरे |
रिश्तों के गंगा-सागर में खुशियों के संसार भरे ||
सुना है मैंने श्याम हमारे |
हर सुख-दुःख में साथ खड़े ||
श्यामा के वंशीघर कर में |
राखी रब-कर में बाँधू ||
चरण-कमल में आस हमारी |
जीवन में नया अंधियारी ||
हमें उबारो है मुरलीधर |
पल-पल तेरा ध्यान धरु ||
मीरा के एहसासों को तुमने |
हर-पल है महसूस किया ||
मुझे भी तारो हे मन-मोहन |
तुझ बिन मेरा आस नहीं ||

- मेनका

Tuesday, 17 October 2017

जीने की उत्कण्ठा - कविता

जीने की उत्कण्ठा - कविता



अजब हलचल सी मन में है, समझ में कुछ नहीं आता|
अजब सा ख्वाब खुशियों का, नाकारा ही नहीं जाता||
जिसे अपना समझती थी, वो गैरों से कही बढ़कर|
किसे अपना बनाऊ मैं, बता दे हे मेरे रघुबर||
सदा अपनों के दिल में ही, तुझे समझा मैं करती थी|
सदा अपनों में पा करके, मैं पूजा ही तोह करती थी||
प्रभु के प्यार के खातिर, जीना ही था मेरा मकसद|
प्रभु का हर वचन हरदम, हमारी कोशिशें जारी||
हमारा कर्म ही पूजा, इसी का ध्यान है रखा|
दरस दे ही मेरे रघुबर, परीक्षा अब न ले मेरी||

अजब हलचल सी मन में है, समझ में कुछ नहीं आता|
अजब सा ख्वाब खुशियों का, नाकारा ही नहीं जाता||
दशा इस दीन का आकर, दिशा दो हे मेरे रघुबर|
हमारी चूक हमसे ही, बता दे हे मेरे रघुबर||
मुझे लोगों के उलझन में, तो जीना ही नहीं आता|
मेरे सपनों में आकर के, मुझे जीना सिखा दे माँ||
मेरे जीवन की नौका को लगा दे, पार हे रघुबर|
मेरे औचित्य जीवन का बता दे, हे मेरे रघुबर||
मुझे सीधा सरल जीना, मेरे दिल को बहुत भाता|
गज़ब हलचल सी मन में है, समझ में कुछ नहीं आता||
गज़ब सा ख्वाब खुशियों का, नाकारा ही नहीं जाता|

- मेनका

Sunday, 15 October 2017

मन मोहन सांवरिया - कविता

मन मोहन सांवरिया - कविता


कहाँ जा छूपे हो मेरे वंशी वजैया|
वंशी वजैया मेरे कृष्ण कन्हैया||
दरस दिखा जा मेरे नाग नथैया|
आ जाओ मेरे प्रभू यशोदा दुलारे||
राक्षस का माखन प्रभू ग्वाला खिवैया|
अब न सताओ प्रभू दरस दिखाजा||
मेरे मन मोहन प्रभू रास रचैया|


कहाँ जा छूपे हो मेरे वंशी वजैया|
मेरी दुर्दशा प्रभू आकर मिटा दे||
मेरी सब बिगड़ी को आकर सुधारो|
रथ के हँकैया प्रभू जल्दी से आ जा||
लाज बचैया प्रभू चीर बढैया|
बिगड़ी बनैया प्रभू मुक्ति दिलैया||
देवकी नन्दन प्रभू नंद के प्यारे|
कहाँ जा छुपे हो प्रभु कृष्ण कन्हैया||

- मेनका

मिलिट्री मैन - कविता

मिलिट्री मैन - कविता दशक चाकरी की वीरों सा| पल-भर में क्यों अनदेख किया|| पलक झपकते दौड़ गए थे| घुटनो के बल रेंग गए थे|| भारत की माटी को हमने|...