Sunday 8 July 2018

फेसबुक - कविता

फेसबुक - कविता


फेसबुक न होता तो हमारा क्या होता|
बच्चों की खुशियाँ है उसने दिलाई||
सारे सवालों का वो है निर्माता|
भटकते भूलो को है मंजिल बताता||
तड़पते दिलों को है राहत दिलाता|
हमारी विवशता उभर ही न पाती||
बच्चियाँ बेचारी यूँ मारी ही जाती|
बहुएँ बेचारी यूँघुट-घुटकर मरती||
सीधे सरल उन इंसानों  यारो|
सरेयाम यूँ ही दबाया न जाता||
बिखड़ी पड़ी थी सामाजिक व्यवस्था|
सिल सिलेवार यूँ ही सजाया न जाता||
दबते यूँ रहते, सब सपने सभी के|
राहे कठिन थी, यूँ जीना दूभर था||
सपनों में पंखे है आकर लगाए|
ज़करबर्ग न होता तो हमारा क्या होता||

- मेनका

अलबेली जीवन शैली - कविता

अलबेली जीवन शैली - कविता


सावन की आई बहार तो झुमता चला गया, झूमता ही चला गया|
जीवन में मिले हर क्लास को लेता चला गया, लेता ही चला गया|
समय कि नयी किताब को पढता चला गया, पढता ही चला गया|
जीवन के हर मोड़ पर चलता चला गया, चलता ही चला गया|
सुनी पड़ी मशाल को जलाता चला गया, जलाता ही चला गया|
किस्मत की पड़ी मार तो रोता चला गया, रोता ही चला गया|
जीवन के हर जुगाड़ में जीता चला गया, जीता ही चला गया|
खाली पड़ी किताब को भरता चला गया, भरता ही चला गया||

सावन की आई बहार तो झुमता चला गया, झूमता ही चला गया|
समय के हर राग को गाता चला गया, गाता ही चला गया|
भावों के हर को फुहाड़ में भीगता चला गया, भीगता ही चला गया|
तोहफे में मिली किताब को सजाता चला गया, सजाता ही चला गया|
जीवन के हर उस भाव को समझता चला गया, समझता ही चला गया|
मौसम के हर उस स्वाद को चखता चला गया, चखता ही चला गया|
 जीवन के दिए हर जुर्म को सहता चला गया, सहता ही चला गया|
खाली पड़ी किताब को भरता चला गया, भरता ही चला गया||

सावन की आई बहार तो झुमता चला गया, झूमता ही चला गया|
भावों की पड़ी दबाव तो कहता चला गया,कहता ही चला गया|
जीवन के बनाये हर पैग को पीता चला गया, पीता ही चला गया|
समय के हर पड़ाव पर ठहरता चला गया, ठहरता ही चला गया|
ख़ुशियों के हर उस ख्वाब में खोता चला गया, खोता ही चला गया|
एहसासों के अन्तर्द्वन्द को लिखता चला गया, लिखता ही चला गया|
जीवन के हर उस रंग को रंगता चला गया, रंगता ही चला गया|
समय के हर कतार में लगता चला गया, लगता ही चला गया||

- मेनका

मिलिट्री मैन - कविता

मिलिट्री मैन - कविता दशक चाकरी की वीरों सा| पल-भर में क्यों अनदेख किया|| पलक झपकते दौड़ गए थे| घुटनो के बल रेंग गए थे|| भारत की माटी को हमने|...