मानव धर्म - कविता
मानवता है धर्म हमारा|
रंग भये बहुतेरे||
इंद्रधनुषी वस्त्र हमारे|
जीव भये बहुतेरे||
आँखों में सुरमा है सुन्दर|
लाल रंग की बिंदी||
केशरिया है तीलक विराजे|
सफ़ेद रंग की धोती||
मानवता है धर्म हमारा|
रंग भये बहुतेरे||
मानवता ममता का आँगन|
निर्मल मन अति भावन||
सजा रहे घर आँगन सबका|
शुद्ध समर्पण सा मन||
बुरी आत्मा बुरा आचरण|
छुपा हुआ अधर्मी||
ममता राग को वह नोचे|
बना फिरे सत्संगी||
अंग विहिन वह सेंसहीन है|
मंजिल है उत्पाती||
तामस तन करुनाविहीन है|
चोला है चित पंचल||
मानवता है धर्म हमारा|
रंग भये बहुतेरे||
- मेनका
अच्छी कविता है।
ReplyDeleteअच्छी कविता है। dharm kavita.blogspot.com
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