Tuesday 11 September 2018

मानव धर्म - कविता

मानव धर्म - कविता


मानवता है धर्म हमारा|
रंग भये बहुतेरे||
इंद्रधनुषी वस्त्र हमारे|
जीव भये बहुतेरे||
आँखों में सुरमा है सुन्दर|
लाल रंग की बिंदी||
केशरिया है तीलक विराजे|
सफ़ेद रंग की धोती||

मानवता है धर्म हमारा|
रंग भये बहुतेरे||
मानवता ममता का आँगन|
निर्मल मन अति भावन||
सजा रहे घर आँगन सबका|
शुद्ध समर्पण सा मन||
बुरी आत्मा बुरा आचरण|
छुपा हुआ अधर्मी||

ममता राग को वह नोचे|
बना फिरे सत्संगी||
अंग विहिन वह सेंसहीन है|
मंजिल है उत्पाती||
तामस तन करुनाविहीन है|
चोला है चित पंचल||
मानवता है धर्म हमारा|
रंग भये बहुतेरे||

- मेनका

2 comments:

मिलिट्री मैन - कविता

मिलिट्री मैन - कविता दशक चाकरी की वीरों सा| पल-भर में क्यों अनदेख किया|| पलक झपकते दौड़ गए थे| घुटनो के बल रेंग गए थे|| भारत की माटी को हमने|...