Wednesday 25 May 2016

नारी की रौनकता - कविता

नारी की रौनकता - कविता


माँ की ममता के चमन में - कर रहा गुजार तू।
आहर सूना है जब से माँ ने - आवाज अपने लाल की॥

करती नहीं वो एक पल भी - देर अपने प्यार की।
ममता के साँसों की खुशबू - महक रही गुड़िया बनकर॥

दिल की धड़कन माँ का है तू - दमक रहा गुड्डा बनकर।
चहल - पहल है आँगन का तू - दरवाजे का नूर है तू॥

सज रहा है पालने में - जल रहे प्रतिद्वन्दियाँ।
सर्वस्व है तू ज़िन्दगी का - और है मसाल तू॥

गा रहा है गीत तू - और दे रहा आवाज़ तू।
ज़िन्दगी की राह है तू - और है पहचान तू॥

लक्ष्य है तू ज़िन्दगी का - दे दिया दस्तक है तू।
व्यक्तित्व है तू ज़िन्दगी का - कर दिया मालामाल है॥

किलकारियों की कलियाँ बनकर - खिल रहा वो प्यार का।
अरमानो के फूल बनकर - सज रहे व्यवहार में॥

ज़िन्दगी की शान है और - बढ़ा रहा गौरव है तू।
चिलचिलाती धुप की - बहुत बड़ी ठंडक है तू॥

ज़िन्दगी के मेघ ने जब दे दिया त्रासदी।
आ गए जहाज बनकर - दे दिया आराम तू॥

सजा रही है आरती की - थाल अपने दुलार की।
मग्न है वो काम में और - मस्त है बहार में॥

- मेनका

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