Wednesday, 31 October 2018

छठ गीत

छठ गीत



बहुत दिवश पर कइली दीनानाथ व्रत तोहार|
दिहब  आशीष दिनकर बाबा दिहब मन-चित लगाय
बड़ा अनुरागे हम पकइली दीनानाथ भोग तोहार
करब कृपा दिनकर बाबा हम करजोरी ठाढ़|
बड़ा रे जतन से सजइली दीनानाथ हथीया तोहार
करु अब स्वीकार दिनकर बाबा सुनु अरजी हमार|

बहुत दिवश पर कइली दीनानाथ व्रत तोहार|
दिऊ न पुराय दिनकर बाबा अब आशा हमार|
बड़ा अनुरागे हम खनइली दीनानाथ घाट तोहार|
होऊ न सहाय दिनकर बाबा सुनु अरजी हमार|
बड़ा रे जतन से सजइली दीनानाथ अरग तोहार
करब कृपा दिनकर बाबा हम करजोरी ठाढ़|
बड़ा अनुरागे हम सजइली दीनानाथ डलबा तोहार|
लिऊ अब अरग दिनकर बाबा लिऊ मन-चित लगाय|
करब क्षमा छठी माता गलती अवगुण माफ़| 

छठ पूजा - गीत

छठ पूजा - गीत




आदित्य देव जी सुनु आहाँ अरजी हमार|
पहिले मंगइछी देव। ..... २ भाई भतीजा,
दिनकर बाबा यो भटकल नइहर दिअऊ न सजाय|
दोसरे मंगइछी देव सर के सेंदुरबा दिनकर
बाबा यो सुहागिन पद दिअऊ बरदान|
आदित्य देव यो सुनु आहाँ अरजी हमार|
तेसरे मंगइछी देव वंश के वैभव दिनकर
बाबा यो ऊजरल वैभव दिअऊ न बसाय|
आदित्य देव जी सुनु आहाँ अरजी हमार|
चौथा मंगइछी देव अन-धन लक्ष्मी,
दिनकर बाबा यो गरीब पद दिअऊ न छोड़ाय|
आदित्य देव जी सुनु आहाँ अरजी हमार||

Tuesday, 16 October 2018

माँ से अर्ज - गीत

माँ से अर्ज - गीत





मइया अनहोनी पर दीअऊ तनी ध्यान यो
प्राणी सब बेहाल यो न|
आहाँ के मंदिर हम गैलौं, आहाँ के शेर के समझाइलौं
मइया अनहोनी पर दीअऊ तनी ध्यान यो
प्राणी सब बेहाल यो न|
आहाँ के पाठ हम कैलौं, ब्रत सेहो हम कैलौं
मइया अनहोनी पर दीअऊ तनी ध्यान यो
प्राणी सब बेहाल यो न|
हम सब चूक कहाँ कैलौं? भूल सेहो हम कैलौं
मइया क्षमा करू सब भूल-चूक हमार यो
प्राणी सब बेहाल यो न|

- मेनका सिन्हा

माँ की अद्भुत क्षबि - कविता

माँ की अद्भुत क्षबि - कविता




महा माया के महिमा कोना हम कहूं?
महा काली के कीर्ति कोना हम कहूं?
हम सपना में देखलऊँ अद्भत क्षबि|
माँ के लाली चुंदरिया में सोना जड़ी|
माँ के प्यारी पैजनिया में घुंघरू लगी|
महामाया के महिमा कोना हम कहूं?
महा काली के कीर्ति कोना हम कहूं?
माँ के सिरो सिन्दुरबा में खुशबु भरी|
माँ के लाल महाबार फूलों से भरी|
महा माया के महिमा कोना हम कहूं?
महा काली के कीर्ति कोना हम कहूं?

- मेनका सिन्हा

Tuesday, 11 September 2018

मानव धर्म - कविता

मानव धर्म - कविता


मानवता है धर्म हमारा|
रंग भये बहुतेरे||
इंद्रधनुषी वस्त्र हमारे|
जीव भये बहुतेरे||
आँखों में सुरमा है सुन्दर|
लाल रंग की बिंदी||
केशरिया है तीलक विराजे|
सफ़ेद रंग की धोती||

मानवता है धर्म हमारा|
रंग भये बहुतेरे||
मानवता ममता का आँगन|
निर्मल मन अति भावन||
सजा रहे घर आँगन सबका|
शुद्ध समर्पण सा मन||
बुरी आत्मा बुरा आचरण|
छुपा हुआ अधर्मी||

ममता राग को वह नोचे|
बना फिरे सत्संगी||
अंग विहिन वह सेंसहीन है|
मंजिल है उत्पाती||
तामस तन करुनाविहीन है|
चोला है चित पंचल||
मानवता है धर्म हमारा|
रंग भये बहुतेरे||

- मेनका

Monday, 10 September 2018

१८ अगस्त - कविता

१८ अगस्त - कविता


जन्मतिथि शुभ अवसर आया,
माँ के हाथ का तोहफा लाया|
सावन की रिमझिम है सुन्दर,
शंकर की डमरू की धुन है|
मना रहा है देश हमारा,
जश्न भारत वर्ष का|

हौसला है लाल माँ का,
बुलंदियाँ है बाप का|
तहजीब है यह देश का.
शान है परिवार का|
गुरुर है मानव धर्म का,
आदर्श भारत वर्ष का|

आरज़ू है माँ से मेरी,
लाज रखना मेरे लाल की|
छूने न पाये गम लबों का.
आशीष दो मेरे ला को|
अमर घूमर खुशियों के बादल,
बरसती रहे यूँ उम्र भर|

- मेनका


Sunday, 8 July 2018

फेसबुक - कविता

फेसबुक - कविता


फेसबुक न होता तो हमारा क्या होता|
बच्चों की खुशियाँ है उसने दिलाई||
सारे सवालों का वो है निर्माता|
भटकते भूलो को है मंजिल बताता||
तड़पते दिलों को है राहत दिलाता|
हमारी विवशता उभर ही न पाती||
बच्चियाँ बेचारी यूँ मारी ही जाती|
बहुएँ बेचारी यूँघुट-घुटकर मरती||
सीधे सरल उन इंसानों  यारो|
सरेयाम यूँ ही दबाया न जाता||
बिखड़ी पड़ी थी सामाजिक व्यवस्था|
सिल सिलेवार यूँ ही सजाया न जाता||
दबते यूँ रहते, सब सपने सभी के|
राहे कठिन थी, यूँ जीना दूभर था||
सपनों में पंखे है आकर लगाए|
ज़करबर्ग न होता तो हमारा क्या होता||

- मेनका

अलबेली जीवन शैली - कविता

अलबेली जीवन शैली - कविता


सावन की आई बहार तो झुमता चला गया, झूमता ही चला गया|
जीवन में मिले हर क्लास को लेता चला गया, लेता ही चला गया|
समय कि नयी किताब को पढता चला गया, पढता ही चला गया|
जीवन के हर मोड़ पर चलता चला गया, चलता ही चला गया|
सुनी पड़ी मशाल को जलाता चला गया, जलाता ही चला गया|
किस्मत की पड़ी मार तो रोता चला गया, रोता ही चला गया|
जीवन के हर जुगाड़ में जीता चला गया, जीता ही चला गया|
खाली पड़ी किताब को भरता चला गया, भरता ही चला गया||

सावन की आई बहार तो झुमता चला गया, झूमता ही चला गया|
समय के हर राग को गाता चला गया, गाता ही चला गया|
भावों के हर को फुहाड़ में भीगता चला गया, भीगता ही चला गया|
तोहफे में मिली किताब को सजाता चला गया, सजाता ही चला गया|
जीवन के हर उस भाव को समझता चला गया, समझता ही चला गया|
मौसम के हर उस स्वाद को चखता चला गया, चखता ही चला गया|
 जीवन के दिए हर जुर्म को सहता चला गया, सहता ही चला गया|
खाली पड़ी किताब को भरता चला गया, भरता ही चला गया||

सावन की आई बहार तो झुमता चला गया, झूमता ही चला गया|
भावों की पड़ी दबाव तो कहता चला गया,कहता ही चला गया|
जीवन के बनाये हर पैग को पीता चला गया, पीता ही चला गया|
समय के हर पड़ाव पर ठहरता चला गया, ठहरता ही चला गया|
ख़ुशियों के हर उस ख्वाब में खोता चला गया, खोता ही चला गया|
एहसासों के अन्तर्द्वन्द को लिखता चला गया, लिखता ही चला गया|
जीवन के हर उस रंग को रंगता चला गया, रंगता ही चला गया|
समय के हर कतार में लगता चला गया, लगता ही चला गया||

- मेनका

Tuesday, 29 May 2018

देह त्याग कर किधर गए? - कविता

देह त्याग कर किधर गए? - कविता 


हम सबको छोड़ चले पिताजी
न जाने कैसे किधर गए?
माँ का जीवन तहस-नहस कर
न जाने कैसे कहाँ गए?
किसे सुनाऊँ खुशियाँ मैं और
किसे बताऊँ अपनी व्यथा?
पापा बिन बस दुनिया अब तो,
बेगाना जैसा लगता हैं|
ऐसी क्या मजबूरी थी
निष्ठूर बन कैसे कहाँ गए?
न जाने कैसे किधर गए?

हम सबको छोड़ चले पिताजी
न जाने कैसे कहाँ गए?
याद में तेरी माँ ने अब तो,
खाना भी है छोड़ दिया|
हम सबकी आस मरोड़ चले
न जाने कैसे किधर गए?
विलख-विलख कर रोते बच्चे
कैसे छोड़ कर कहाँ गए?
किसे देख कर में इठलाऊँ?
भाग्य बड़ा बनकर इतराऊं|
बिना बताये अनकहे शब्द तुम,
लेकर कैसे कहाँ गए?

- मेनका

Sunday, 20 May 2018

बेटी का संदेश - मायके के नाम - कविता

 बेटी का संदेश - मायके के नाम - कविता


पले बढे हम जिस धरती पर
याद बहुत आती है भइया
अगर अकेली मैं पड़ जाऊँ
बातों से साथ निभाना भइया
नहीं चाहिए खाना कपडा
भाभी को समझाना भइया
बच्चों को समझाना भइया
अपनी बात बताना भइया

पले बढे हम जिस धरती पर
याद बहुत आती है भइया
समय भले तुम न दे पाओ
हिस्से की रोटी खा जाओ
नही चाहिए छप्पन व्यंजन
भावों की भूखी हूँ भइया
बहन बानी बाँधी मैं राखी
दिल में जगह बनाये रखना

पले बढे हम जिस धरती पर
याद बहुत आती है भइया
कौल भले ही न कर पाओ
फ़ोन उठा तुम लेना भइया
ममता से है बना मायका
पिता छाँव का गहरा रिश्ता
भाभी तोह भावों की कुंजी
मेरी बात बताना भइया

पले बढे हम जिस धरती पर
याद बहुत आती है भइया
ब्रत एकादशी के दिन आऊँगी
खाली हाथ नहीं आऊँगी
कहाँ से लाऊँ हीरे-मोती
करूँ मांग में सबकी पूरी
अनजाने की गलती भाभी
मुझे बता तुम देना भइया

- मेनका

वंश का वैभव (१८ अगस्त) - कविता

वंश का वैभव (१८ अगस्त) - कविता


भाद्र माह मन भावन आया|
त्योहारों की खुशियाँ लाया||
बना वंश वैभव संरक्षक|
जन्मदिन की खुशियाँ लाया||
मम्मी की आँखों का तारा|
पापा का है राज दुलारा||
बना बहन का रक्षक आया|
बाबा का वंशज बन आया||
भाद्र माह मन भावन आया|
भाई बहन का उत्सव आया||

आज़ादी अधिकार महोत्सव|
उत्सव की धुन सुनकर आया||
भारत के भावों का प्यारा|
पापा के प्राणों से प्यारा||
वृन्दावन की छटा निराली|
जन्म लिये है वृज बिहारी||
मथुरा में मन मोहन की धुन|
बना भक्त बन सुनने आया||
भाद्र माह अति सुन्दर आया|
कृष्ण जन्म  खुशियां लाया||

भाद्र माह मन भावन आया|
गणेश चतुर्थी घर-घर आये||
हरियाली है तीज सुहाये|
पारवती संग सखियाँ भावे||
शीव-शम्मू का ब्रत अति सुन्दर|
हरियाली छवि छटा सुहाये||
भाद्र मॉस पूर्णमासी के दिन|
आनन्द कन्द ब्रत मन मोहे सबको||
भाद्र माह मन भावन आया|
त्योहारों की खुशियाँ लाया||

- मेनका

Monday, 12 February 2018

प्रारब्ध - कविता

प्रारब्ध - कविता


प्रारब्ध हमारी तय करती है,
नाते रिश्ते सारे|
समय की गाडी छूक-छूक करती,
चल पड़ती सब द्धारे|
हम चाहे कितना इतराले,
चाल चले नौलख्खा|
कर्मों का मौसम आयेगा,
नज़र दिखे भौचक्का|

प्रारब्ध हमारी हमें बुलाती,
दुश्मन चाहे कितना रोके|
घडी हमारी टिक-टिक करती,
हम चाहे कितना रोके|
जान से प्यारी धरती माँ है,
प्राण से प्यारी शेरावाली|
माँ से प्यारी बेटी रानी,
जग से न्यारी बहू हमारी|

स्वर्ग से सुन्दर धरा हमारी,
हम सब की शोभा अति प्यारी|
गलत सही सब वो तय करता,
मालिक है हम सबका|
दूर खड़ा वो हमें दिखाता,
राहें सब हम सबको|
गुजर गए जब गम के बादल,
दस्तक दी खुशियों की रिमझिम|

- मेनका

मिलिट्री मैन - कविता

मिलिट्री मैन - कविता दशक चाकरी की वीरों सा| पल-भर में क्यों अनदेख किया|| पलक झपकते दौड़ गए थे| घुटनो के बल रेंग गए थे|| भारत की माटी को हमने|...